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क्या है 5वीं और 8वीं क्लास के लिए नो डिटेंशन पॉलिसी, इसे खत्म करने से क्या पड़ेगा असर? आपके हर सवाल के जवाब




नई दिल्‍ली:

5वीं और 8वीं क्लास में फेल होने वाले बच्चों को अब अगली क्लास में प्रमोट नहीं किया जाएगा. केंद्र सरकार ने सोमवार को ‘नो डिटेंशन पॉलिसी’ (No Detention Coverage) खत्म कर दी है. पहले इस नियम के तहत फेल होने वाले छात्रों को दूसरी क्लास में प्रमोट कर दिया जाता था. नए नियम के तहत अब उनको फेल ही माना जायेगा. पास होने के लिए उन्हें दोबारा परीक्षा देनी होगी. जब तक वे पास नहीं होते, तब तक उन्हें प्रमोट नहीं किया जाएगा. हालांकि, स्कूल ऐसे छात्रों को निकाल नहीं कर सकते हैं. केंद्र सरकार की नई पॉलिसी का असर केंद्रीय विद्यालयों, नवोदय विद्यालयों और सैनिक स्कूलों सहित करीब 3 हजार से ज्यादा स्कूलों पर होगा. ये पॉलिसी 16 राज्य और 2 केंद्र शासित प्रदेश (दिल्ली और पुडुचेरी) नो-डिटेंशन पॉलिसी पहले से ही खत्म की जा चुकी हैं. 

शिक्षा मंत्रालय के मुताबिक, स्कूली शिक्षा राज्य का विषय है, इसलिए राज्य इस संबंध में अपना निर्णय ले सकते हैं. आइए जानते हैं क्या है नो डिटेंशन पॉलिसी? सरकार ने इसे क्यों खत्म किया? इस पॉलिसी के खत्म करने से छात्रों पर क्या पड़ेगा असर:-

नो-डिटेंशन पॉलिसी क्या है?

शिक्षा के अधिकार अधिनियम यानी राइट टू एजुकेशन (RTE) में नो-डिटेंशन पॉलिसी का जिक्र है. इसके मुताबिक, किसी भी छात्र को तब तक फेल या स्कूल से निकाला नहीं जा सकता, जब तक वह क्लास 1 से 8 तक की प्राथमिक शिक्षा पूरी नहीं कर लेता. यानी अगर कोई बच्चा क्लास 8 तक परीक्षा में फेल हो जाता है, तो उसे अगली क्लास में प्रमोट करने का प्रावधान है.

ये पॉलिसी क्यों रखी गई थी?

साल 2010-11 से 8वीं क्लास तक परीक्षा में फेल होने के प्रावधान पर रोक लगा दी गई थी. इसके बाद बच्चों को फेल होने के बावजूद अगली क्लास में प्रमोट कर दिया जाता था. ताकि बच्चों में हीन भावना न आए या वो सुसाइड जैसा कदम न उठा लें. कमजोर बच्चे भी बाकी बच्चों की तरह बेसिक एजुकेशन हासिल कर सके.

कैसे बनी ये पॉलिसी?

जुलाई 2018 में लोकसभा में राइट टु एजुकेशन को संशोधित करने के लिए बिल पेश किया गया था. इसमें स्कूलों में लागू ‘नो डिटेंशन पॉलिसी’ को खत्म करने की बात थी. 2019 में ये बिल राज्य सभा में पास हुआ. इसके बाद ये कानून बन गया. राज्य सरकारों को ये हक था कि वो ‘नो डिटेंशन पॉलिसी’ हटा सकते हैं या लागू रख सकते हैं. यानी राज्य सरकार ये फैसला ले सकती थीं कि 5वीं और 8वीं में फेल होने पर छात्रों को प्रमोट किया जाए या क्लास रिपीट करवाई जाए.

फिर इस पॉलिसी से क्या हुई दिक्कत?

इस पॉलिसी से शिक्षा के लेवल में धीरे धीरे गिरावट आने लगी. यानी बच्चे बिना पढ़े और मेहनत किए अगली क्लास में पहुंच जाते थे. इसका सीधा असर बोर्ड एग्जाम में देखा जा सकता था. इसलिए काफी लंबे समय से इस मामले पर विचार-विमर्श के बाद नियमों में बदलाव कर दिया गया. इस पॉलिसी से बच्चों में लापरवाही बढ़ी, उन्हें फेल होने का डर नहीं रहा.

कब लिया पॉलिसी को खत्म करने का फैसला?

2016 में सेंट्रल एडवाइजरी बोर्ड ऑफ एजुकेशन यानी CABE ने ह्यूमन रिसोर्स डेवलपमेंट मिनिस्ट्री को ‘नो डिटेंशन पॉलिसी’ हटाने का सुझाव दिया था. इसके पीछे तर्क दिया गया कि नो डिटेंशन पॉलिसी से छात्रों के सीखने और समझने का स्तर कम हो रहा है. इस पॉलिसी में मुख्य रूप से एलिमेन्ट्री एजुकेशन में स्टूडेंट्स का एरोल्मेंट बढ़ाने पर फोकस किया गया, जबकि बेसिक एजुकेशन का स्तर गिरता रहा.

इस पॉलिसी को खत्म करने का मकसद?

इस पॉलिसी को खत्म करने का मुख्य उद्देश्य एकेडमिक परफॉर्मेंस में सुधार लाना है. इसके साथ ही इससे छात्रों की सीखने की क्षमता में भी विकास होगा. 

नो डिटेंशन खत्म होने के बाद अब क्या हैं नए नियम?

  • जो छात्र 5वीं और 8वीं तक फेल हो जाते हैं, उनके लिए स्कूलों को 2 महीने के अंदर दोबारा से परीक्षा आयोजित करनी होगी. ऐसे में फेल हुए छात्र 2 महीने के अंदर ही उस विषय की अच्छी तैयारी करके उस कक्षा में पास हो पायेंगे.
  • अगर 2 महीने के अंदर होने वाली परीक्षा में भी संबंधित छात्र फेल हो जाता है, तो उसे प्रमोट नहीं किया जाएगा. उसे उसी क्लास में रिपीट किया जाएगा.
  • इस केस में जरूरत पड़ने पर क्लास के टीचर छात्र की कमजोरी पर काम करेंगे. उसके माता-पिता के साथ सहयोग से प्लान बनाएंगे.
  • प्रिंसिपल फेल में छात्रों की एक लिस्ट बनाएंगे और उनकी प्रोग्रेस की मॉनिटरिंग करेंगे. ऐसे छात्रों का रि-एग्जाम उनकी याद और सीखने की क्षमता पर निर्भर करेगा.
  • छात्र जब तक अपनी बेसिक एजुकेशन पूरी नहीं कर लेता, तब तक उसे स्कूल से नहीं निकाला जा सकता.




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