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Thursday, November 7, 2024
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एम. एस. स्वामीनाथन की स्मृति में : भारतीय हरित क्रांति के जनक


वर्तमान अगस्त महीने में, डॉ. एम.एस. स्वामीनाथन की 100वीं जयंती मनाते हुए हम भारतीय खाद्य निगम (भा.खा.नि.) के कर्मचारी व अधिकारीगण गर्व से देश के साथ सहबद्ध हो रहे हैं. यह वर्ष हमारे लिए एक दोहरा महत्व रखता है: यह भा.खा.नि. की 60वीं वर्षगांठ, भारत की खाद्य सुरक्षा की आधारशिला के साथ डॉ. स्वामीनाथन को भारत का सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार, भारत रत्न प्रदान करने वाला वर्ष भी है. उनका अग्रणी कार्य हमारे देश के कृषि परिदृश्य को आकार देने और उसके भविष्य को सुरक्षित करने में सहायक रहा है.

हरित क्रांति के आगमन से पहले, भारत को भोजन की भारी कमी का सामना करना पड़ा और वह अन्य देशों से मिलने वाली खाद्य सहायता पर बहुत अधिक निर्भर था. पीएल 480 कार्यक्रम, जिसे शांति के लिए भोजन कार्यक्रम के रूप में भी जाना जाता है, इस युग के दौरान एक महत्वपूर्ण जीवन रेखा थी. संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा शुरू किए गए सार्वजनिक कानून 480 (पीएल 480) कार्यक्रम ने भारत को आवश्यक खाद्य सहायता प्रदान की, जिससे घरेलू उत्पादन और खपत के बीच अंतर को पाटने में मदद मिली. निर्भरता की इस अवधि ने खाद्य उत्पादन में आत्मनिर्भरता की तत्काल आवश्यकता पर प्रकाश डाला और इसके बाद होने वाले परिवर्तनकारी बदलावों की नींव रखी.

हरित क्रांति की सफलता केवल खाद्य उत्पादन की  वृद्धि में नहीं थी, बल्कि इसके द्वारा लाए गए गहन सामाजिक-आर्थिक परिवर्तनों में भी थी. नई प्रौद्योगिकियों और ज्ञान से सशक्त होकर भारत भर के किसानों ने अपनी उपज में वृद्धि देखी और उनकी आजीविका में सुधार हुआ. इस कृषि पुनर्जागरण ने भारत में एक लचीली और मजबूत खाद्य प्रणाली की नींव रखी.

जैसा कि हम डॉ. स्वामीनाथन की विरासत का जश्न मनाते हैं, सभी के लिए खाद्य सुरक्षा के उनके दृष्टिकोण को साकार करने में भारतीय खाद्य निगम की महत्वपूर्ण भूमिका को पहचानना आवश्यक है. 1964 में स्थापित, भा. खा. नि.  की स्थापना यह सुनिश्चित करने के लिए की गई थी कि हरित क्रांति का लाभ देश के हर कोने तक पहुंचे. हरित क्रांति के बीज, जो उत्तरी भारत में अंकुरित हुए, धीरे-धीरे विकसित हुए और पूरे देश में फैल गए. जैसे ही डॉ. स्वामीनाथन के नवाचारों ने उत्पादन को बढ़ावा दिया, भा. खा. नि. ने अधिकांश राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में खाद्यान्न की खरीद, भंडारण और वितरण का महत्वपूर्ण कार्य संभाला. यह साझेदारी खाद्य कीमतों को स्थिर करने, बफर स्टॉक बनाए रखने और यह सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण थी कि खाद्यान्न सस्ती कीमतों पर उपलब्ध हो, जिससे लाखों लोगों की खाद्य सुरक्षा सुरक्षित रहे.

भा. खा. नि. केवल खरीद और वितरण के लिए नहीं है; यह किसानों के लिए जीवन रेखा है और लाखों कमजोर नागरिकों के लिए सुरक्षा जाल है. किसानों की उपज के लिए एक विश्वसनीय बाजार प्रदान करके, भा. खा. नि. यह सुनिश्चित करने में मदद करता है कि कृषि उत्पादकता के लाभ समान रूप से साझा किए जाते हैं, ग्रामीण आजीविका का समर्थन करते हैं और कृषि क्षेत्र की समग्र स्थिरता में योगदान करते हैं. 
खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भरता के लिए डॉ. स्वामीनाथन के दृष्टिकोण को आगे बढ़ाते हुए, भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) ने अब खाद्य सुरक्षा के साथ-साथ पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए एक कदम और आगे बढ़ाया है. यह रणनीति आहार में विटामिन और खनिजों को बढ़ाने के लिए खाद्यान्न की खरीद और सुदृढ़ीकरण पर केंद्रित है.

फोर्टिफाइड चावल में 1% फोर्टिफाइड दाने होते हैं, जो विटामिन बी12, आयरन और फोलिक एसिड से समृद्ध होते हैं, जो एनीमिया और कुपोषण से निपटने में मदद करते हैं. यह पहल विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि चावल भारत के मुख्य खाद्य पदार्थों में से एक है, जिसका उपभोग दो-तिहाई से अधिक आबादी करती है.

2020-2022 कोविड-19 महामारी के दौरान, भा. खा. नि. का लचीलापन और अनुकूलनशीलता का अभूतपूर्व तरीके से परीक्षण किया गया. जवाब में, भा. खा. नि. ने राष्ट्रीय कल्याण के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को प्रदर्शित करते हुए प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (पीएमजीकेएवाई) के तहत 1118 एलएमटी (लाख मीट्रिक टन) से अधिक खाद्यान्न कुशलतापूर्वक वितरित किया. इस व्यापक प्रयास ने यह सुनिश्चित किया कि लाखों कमजोर नागरिकों को संकट के दौरान आवश्यक खाद्य आपूर्ति तक पहुंच प्राप्त हो, जिससे राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान खाद्य सुरक्षा बनाए रखने में भा.खा.नि. की महत्वपूर्ण भूमिका उजागर हुई.

डॉ. स्वामीनाथन ने विशेष रूप से बच्चों और गर्भवती महिलाओं जैसे कमजोर समूहों के लिए पोषण सुरक्षा पर भी जोर दिया. न केवल मात्रा बल्कि भोजन की गुणवत्ता के महत्व को पहचानते हुए, भा.खा.नि. का बुनियादी ढांचा फोर्टिफाइड चावल के वितरण का समर्थन करता है, जिससे आवश्यक पोषक तत्वों तक व्यापक पहुंच सुनिश्चित होती है. यह पहल खाद्य सुरक्षा के लिए स्वामीनाथन जी के समग्र दृष्टिकोण के अनुरूप है, जो आबादी की कैलोरी और पोषण संबंधी दोनों जरूरतों को पूरा करता है.

हरित क्रांति से परे, डॉ. स्वामीनाथन की स्थायी विरासत सतत विकास के लिए उनकी वकालत में निहित है. 1988 में एम. एस. स्वामीनाथन रिसर्च फाउंडेशन (एमएसएसआरएफ) की स्थापना उनकी स्थिरता, जैव विविधता संरक्षण और ग्रामीण विकास के प्रति उनकी प्रतिबद्धता का प्रतीक है. पर्यावरण-अनुकूल कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देने और ग्रामीण समुदायों को सशक्त बनाने में एमएसएसआरएफ के कार्य ने दुनिया भर में सतत कृषि विकास के लिए एक मानक स्थापित किया है.

डॉ. स्वामीनाथन का सदाबहार क्रांति का दृष्टिकोण समकालीन कृषि पद्धतियों को प्रेरित करता रहता है. खेती में जैव प्रौद्योगिकी, आनुवंशिक इंजीनियरिंग और सूचना प्रौद्योगिकी को एकीकृत करने पर उनके जोर ने एक आधुनिक कृषि प्रतिमान का मार्ग प्रशस्त किया है जो उत्पादक और पर्यावरण की दृष्टि से धारणीय है.

जैसा कि हम भा.खा.नि. में अपनी 60वीं वर्षगांठ मना रहे हैं, हम डॉ. स्वामीनाथन के प्रति गहरी कृतज्ञता व्यक्त करते हैं, जिनका जीवन और कार्य आशा और प्रगति का प्रतीक रहा है. उनके योगदान ने यह सुनिश्चित किया है कि भारतीयों की पीढ़ियों को खाद्य सुरक्षा तक पहुंच प्राप्त हो और उन्होंने धारणीय कृषि की दिशा में एक वैश्विक आंदोलन को प्रेरित किया है.

उनकी शताब्दी के इस महत्वपूर्ण अवसर पर, हम डॉ. एम.एस. स्वामीनाथन को न केवल कृषि में उनके उल्लेखनीय योगदान के लिए, बल्कि एक ऐसी दुनिया के बारे में उनके दृष्टिकोण के लिए सम्मानित करते हैं, जहां विज्ञान और करुणा एक बेहतर और अधिक न्यायसंगत भविष्य बनाने के लिए एकजुट होते हैं. उनकी विरासत हमें मार्गदर्शन और प्रेरणा देती रहेगी क्योंकि हम सभी के लिए खाद्य सुरक्षा और स्थिरता के आदर्शों को बनाए रखने का प्रयास करते हैं.

भा.खा.नि. और डॉ. स्वामीनाथन ने मिलकर एक धारणीय और भूख मुक्त भारत की दिशा में एक मार्ग प्रशस्त किया है. उनके संयुक्त प्रयास आगे का मार्ग प्रकाशमय करते रहेंगे और आने वाली पीढ़ियों के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करेंगे. 

कुमुद कुमार बरुआ, महाप्रबंधक,(जनसम्पर्क) मुख्यालय भा.खा.नि.
शिरीष मोहन, उप महाप्रबंधक, (जनसम्पर्क) मुख्यालय भा.खा.नि.
अनुवाद – संकर्ष चतुर्वेदी, स.श्रे.तृतीय(राजभाषा) यो. एवं अनु. मुख्यालय भा.खा.नि.
नोट: इस लेख में व्यक्त राय पूर्णरूपेण लेखक की हैं.

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