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Uttar Pradesh News: सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी नौकरियों में ऐड-हॉकिज़्म पर आपत्ति जताई और कहा कि यह प्रशासनिक ढांचे पर भरोसे को कमजोर करता है. यूपी उच्च शिक्षा सेवा आयोग के कर्मचारियों की सेवाओं को नियमित करने का …और पढ़ें


सुप्रीम कोर्ट उत्तर प्रदेश उच्च शिक्षा सेवा आयोग से जुड़े कर्मचारियों के मामले की सुनवाई कर रही थी. इन कर्मचारियों को 1989 से 1992 के बीच दैनिक वेतनभोगी आधार पर लगाया गया था. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यह कहते हुए इनकी अपील खारिज कर दी थी कि आयोग में नियमितीकरण के नियम मौजूद नहीं थे. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्य केवल बाजार का सहभागी नहीं है, बल्कि एक संवैधानिक नियोक्ता है. जब कोई काम रोज़ाना और साल-दर-साल होता है, तो विभाग की स्वीकृत ताकत और भर्ती प्रक्रियाओं में इसका प्रतिबिंब होना चाहिए. पीठ ने कहा, “बजट संतुलित करने के लिए उन लोगों की पीठ पर बोझ नहीं डाला जा सकता जो सबसे बुनियादी और दोहराए जाने वाले सार्वजनिक कार्य करते हैं.”
अदालत ने साफ किया कि वित्तीय तंगी सार्वजनिक नीति में एक जगह रखती है, लेकिन यह कोई ऐसा ताबीज़ नहीं है जो निष्पक्षता और कानूनसम्मत कार्य संगठन की ड्यूटी को दरकिनार कर दे. कोर्ट ने कहा, “अस्पष्ट और अपारदर्शी प्रशासन ऐड-हॉकिज़्म को बढ़ावा देता है.” पीठ ने राज्य सरकारों को यह भी निर्देश दिया कि वे सटीक मस्टर रोल, इस्टैब्लिशमेंट रजिस्टर और आउटसोर्सिंग व्यवस्था का रिकॉर्ड रखें और यह भी प्रमाणित करें कि वे स्थायी पदों पर भर्ती की बजाय अस्थायी नियुक्तियां क्यों कर रहे हैं.
संवेदनशीलता जरूरी
अदालत ने कहा, “लंबे समय तक असुरक्षा में जी रहे कर्मचारियों के मानवीय परिणामों के प्रति संवेदनशील होना भावुकता नहीं, बल्कि संवैधानिक अनुशासन है. यही सिद्धांत हर उस फैसले का मार्गदर्शन करना चाहिए जिससे सार्वजनिक संस्थानों को चलाने वाले कर्मचारी प्रभावित होते हैं.”


पत्रकारिता में 14 साल से भी लंबे वक्त से सक्रिय हूं. साल 2010 में दैनिक भास्कर अखबार से करियर की शुरुआत करने के बाद नई दुनिया, दैनिक जागरण और पंजाब केसरी में एक रिपोर्टर के तौर पर काम किया. इस दौरान क्राइम और…और पढ़ें
पत्रकारिता में 14 साल से भी लंबे वक्त से सक्रिय हूं. साल 2010 में दैनिक भास्कर अखबार से करियर की शुरुआत करने के बाद नई दुनिया, दैनिक जागरण और पंजाब केसरी में एक रिपोर्टर के तौर पर काम किया. इस दौरान क्राइम और… और पढ़ें
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