नई दिल्ली. दिल्ली में वर्षों से मद्रासी कैंप में रहे कृष्णन और उनके परिवार का नया घर अब ‘सनलाइट आश्रम’ है जिसका विकल्प उन्होंने अपनी मर्जी से नहीं, बल्कि हताशा में चुना है क्योंकि शिविर को ढहा दिया गया है. कृष्णन ने कहा, “हमारे पास आश्रम में शरण लेने के अलावा कोई विकल्प नहीं था. मेरा वर्कप्लेस पास में ही है और कहीं दूर जाने का मतलब है रोजगार से हाथ धो बैठना.”
दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश के बाद नगर निगम अधिकारियों के तोड़फोड़ अभियान के कारण बारापुला ब्रिज के पास झुग्गी बस्तियों में स्थित उनका घर मलबे में तब्दील हो गया. आशियाना उजड़ने के बाद कृष्णन अब नया आश्रय ढूंढने, अधिक एवं अग्रिम किराया भुगतान जैसी कई चुनौतियों का सामना कर रहे हैं.
उन्होंने कहा, ठहम सिर छिपाने के लिए जगह ढूंढने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन अग्रिम और अधिक किराया भुगतान के कारण यह काम मुश्किल लग रहा है. आश्रम जो कभी चार हजार रुपये लेता था अब आठ हजार रुपये मांग रहा है.ठ
दशकों पुरानी झुग्गी बस्ती के ध्वस्त होने से 370 परिवार बेघर हो गए हैं, जिनमें से कई ने आश्रमों और सामुदायिक आश्रयों में अस्थायी शरण ली है. मद्रासी कैंप में 60 वर्षों से रहने वाले वाहन चालक प्रशांत ने कहा कि 150 से अधिक लोग पास के आश्रमों में चले गए हैं.
उन्होंने कहा, ‘‘मैंने यहां अपने परिवार का पालन-पोषण किया. अब हम सात लोग एक कमरे में रहने को मजबूर हैं. उम्मीद नहीं थी कि हम अचानक सब कुछ खो देंगे.’’
निवासियों और कार्यकर्ताओं ने सरकार से इस तरह के अभियान से पहले उचित पुनर्वास सुनिश्चित करने का आग्रह किया. नरेला में सरकारी फ्लैट के लिए 189 परिवार पात्र पाए गए हैं, जबकि कई अन्य का दावा है कि उन्हें स्पष्ट जवाब ही नहीं दिया गया.
पात्र परिवारों की सूची 12 अप्रैल को जारी की गई थी. अधिकारियों ने 30 मई को निवासियों को सूचित किया कि 31 मई से एक जून तक नरेला के फ्लैट में स्थानांतरित होने के लिए बारापुला ब्रिज पर ट्रक मौजूद रहेंगे. सुमिधि ने कहा कि उनकी गर्भवती बेटी को नया घर नहीं मिल पाया है.
कैंप में 30 साल रहीं सुमिधि ने पूछा, “हमें कहा गया था कि हमें घर दिए जाएंगे, लेकिन हमें कुछ भी नहीं मिला. अब हम कहां जाएं?” दक्षिण पूर्वी दिल्ली के जिलाधिकारी अनिल बांका ने कहा कि दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा निर्देशित अतिक्रमण विरोधी अभियान के तहत तोड़फोड़ की गई.
उन्होंने कहा, “बारापुला नाले के संकरे होने से सफाई करना मुश्किल हो गया और मानसून के दौरान बाढ़ आ गई थी. यह अभियान जरूरी था.” उन्होंने पुष्टि की कि 370 घरों को ध्वस्त किया गया है और 189 परिवार पुनर्वास के लिए पात्र पाये गए हैं. यह अभियान लोक निर्माण विभाग, दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड, राजस्व विभाग और दिल्ली पुलिस की सहायता से चलाया गया.
Discover more from News Journals
Subscribe to get the latest posts sent to your email.